14th feb 2009
jalore
जालोर का एक वीरमदेव राष्ट्रप्रेम के लिए सांसारिक प्रेम के अनुग्रह को ठोकर मारता है तो उसके साथ स्वर्णगिरी की सैकड़ों वीरांगनाएं जौहर व्रत का अनुष्ठान करती हैं और हजारों वीर शाका करते हैं। कई कहते हैं जीते जी आग में जल जाना क्या बेवकूफी थी? यह किसी सिद्धि या शक्ति का प्रदर्शन नहीं होता था। यह राष्ट्रगौरव के प्रति प्रेम का भाव था।
इस भाव को न तो दुनियावी रिश्तों से बांधा जा सकता है और न ही शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। वात्सल्य, स्नेह, अनुराग, रति, भक्ति, श्रद्धा व ममता जैसे पर्याय रहे प्रेम का आज एक ही अंग्रेजी अर्थ `लव´ बचा है। `प्रेम´ और `लव´ को पर्यायवाची मानने की प्रवृत्ति ने प्रेम से उसकी पवित्रता छीन ली है। इससे आज का प्रेम `अंगे्रजी लव´ के कागजी फूलों के गुलदस्तों में उलझकर अपनी वास्तविक सुगंध खो बैठा है। प्रेम केवल मानवजाति के लिए नहीं है यह सृष्टि के चराचर जगत के प्रति होता है। प्रेम सृष्टि के कण-कण का ध्यान रखता है और हम सभी के प्रति प्रेम से बंधे होते हैं। वेलेंटाइन डे प्रेम की परिभाषा को नर और मादा के बीच ही समेटकर रखना चाहता है तो इसे शाश्वत नहीं कहा जा सकता। इन दोनों के बीच का शारीरिक एवं भावनात्मक आवेग कब थम जाए और कब आकर्षण समाप्त हो जाए कोई नहीं कह सकता। मीरां ने कृष्ण से प्रेम करके दुनिया में प्रेम को अलौकिक रंग दिया। वह अलौकिक प्रेम जो वीरम ने स्वर्णगिरी से, कृष्णा ने उदयपुर से और प्रताप ने मेवाड़ से किया। वह अलौकिक प्रेम जिसके लिए लिखी गईं पंक्तियां केशव, जायसी, तुलसी, सूर, कबीर, मीरां, रसखान, रहीम व घनानंद जैसे कितने ही कवियों को युगों के लिए अमर कर गईं। विवेकानंद और तिलक का पूरा दर्शन युवाओं को राष्ट्र के प्रति प्रेम का आहृवान करता है, लेकिन आज स्थिति उलट है युवाओं में राष्ट्र के प्रति प्रेम नहीं बचा। अच्छे वेतन के बावजूद सेना में कोई नहीं जाना चाहता। सन 1991-92 से भारतीय सेना के 30 प्रतिशत अधिकारियों के पद रिक्त पड़े हैं। युवाओं में राष्ट्र के प्रति प्रेम कितना बचा है यह तो इससे साबित हो जाता है कि सेना में चयनित होने के बाद अस्सी में से चालीस महिलाएं प्रशिक्षण के लिए ही नहीं आईं। कुल मिलाकर वेलेंटाइन डे के मौके पर एक कार्ड या फूल के माध्यम से संपूर्ण समर्पण और प्रेम का स्वरूप नहीं जाना जा सकता। इसके लिए तो अलौकिक प्रेम की धारा में आकंठ उतरना पड़ेगा। चाहे वह प्रेयसी, पत्नी, परिजन, मित्र अथवा राष्ट्र से ही क्यों न हो।
अमीर खुसरो कह गए हैं…
खुसरो दरिया प्रेम की वां की उलटी धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार
jalore
जालोर का एक वीरमदेव राष्ट्रप्रेम के लिए सांसारिक प्रेम के अनुग्रह को ठोकर मारता है तो उसके साथ स्वर्णगिरी की सैकड़ों वीरांगनाएं जौहर व्रत का अनुष्ठान करती हैं और हजारों वीर शाका करते हैं। कई कहते हैं जीते जी आग में जल जाना क्या बेवकूफी थी? यह किसी सिद्धि या शक्ति का प्रदर्शन नहीं होता था। यह राष्ट्रगौरव के प्रति प्रेम का भाव था।
इस भाव को न तो दुनियावी रिश्तों से बांधा जा सकता है और न ही शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है। वात्सल्य, स्नेह, अनुराग, रति, भक्ति, श्रद्धा व ममता जैसे पर्याय रहे प्रेम का आज एक ही अंग्रेजी अर्थ `लव´ बचा है। `प्रेम´ और `लव´ को पर्यायवाची मानने की प्रवृत्ति ने प्रेम से उसकी पवित्रता छीन ली है। इससे आज का प्रेम `अंगे्रजी लव´ के कागजी फूलों के गुलदस्तों में उलझकर अपनी वास्तविक सुगंध खो बैठा है। प्रेम केवल मानवजाति के लिए नहीं है यह सृष्टि के चराचर जगत के प्रति होता है। प्रेम सृष्टि के कण-कण का ध्यान रखता है और हम सभी के प्रति प्रेम से बंधे होते हैं। वेलेंटाइन डे प्रेम की परिभाषा को नर और मादा के बीच ही समेटकर रखना चाहता है तो इसे शाश्वत नहीं कहा जा सकता। इन दोनों के बीच का शारीरिक एवं भावनात्मक आवेग कब थम जाए और कब आकर्षण समाप्त हो जाए कोई नहीं कह सकता। मीरां ने कृष्ण से प्रेम करके दुनिया में प्रेम को अलौकिक रंग दिया। वह अलौकिक प्रेम जो वीरम ने स्वर्णगिरी से, कृष्णा ने उदयपुर से और प्रताप ने मेवाड़ से किया। वह अलौकिक प्रेम जिसके लिए लिखी गईं पंक्तियां केशव, जायसी, तुलसी, सूर, कबीर, मीरां, रसखान, रहीम व घनानंद जैसे कितने ही कवियों को युगों के लिए अमर कर गईं। विवेकानंद और तिलक का पूरा दर्शन युवाओं को राष्ट्र के प्रति प्रेम का आहृवान करता है, लेकिन आज स्थिति उलट है युवाओं में राष्ट्र के प्रति प्रेम नहीं बचा। अच्छे वेतन के बावजूद सेना में कोई नहीं जाना चाहता। सन 1991-92 से भारतीय सेना के 30 प्रतिशत अधिकारियों के पद रिक्त पड़े हैं। युवाओं में राष्ट्र के प्रति प्रेम कितना बचा है यह तो इससे साबित हो जाता है कि सेना में चयनित होने के बाद अस्सी में से चालीस महिलाएं प्रशिक्षण के लिए ही नहीं आईं। कुल मिलाकर वेलेंटाइन डे के मौके पर एक कार्ड या फूल के माध्यम से संपूर्ण समर्पण और प्रेम का स्वरूप नहीं जाना जा सकता। इसके लिए तो अलौकिक प्रेम की धारा में आकंठ उतरना पड़ेगा। चाहे वह प्रेयसी, पत्नी, परिजन, मित्र अथवा राष्ट्र से ही क्यों न हो।
अमीर खुसरो कह गए हैं…
खुसरो दरिया प्रेम की वां की उलटी धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार