बीते दो दिन में बड़ा नाटक चला। राम नाम की नाव में सवार पार्टी इन दिनों अम्बेडकर के चरणों में ‘फूल’ चढ़ा रही थी। दूसरी ओर कभी पार्टी से बाहर करके बाद में बाबा साहब के अनुयायी रामजी को हाथ जोड़ते नजर आए। फिर कौन कह रहा है कि भारत असहिष्णु है। बाबा साहब तो राम, दुर्गा जैसी मूर्तिपूजक परम्पराओं वाले हिन्दू धर्म को छोडक़र बौद्ध हो गए और इसे सार्थक भी बताया। बाबा साहब पहले सिर्फ दलितों के दिल में थे। बाद में हाथ के छापे पर आ गए और अब कमल सवार हो गए। इधर लगातार कम होती टीआरपी और हिट्स के बीच अयोध्या में से रामजी भी देख रहे होंगे कि उनका वोट बैंक जरा कमजोर हो चला है। मैनफीस्टो से बाहर हुए प्रभु चिंतित है कि कहीं वे देश की जनता के दिल से ही बाहर हो जाएं।
खैर! अम्बेडकरजी की 125वीं वर्षगांठ बहुत कुछ कह गई। हाथ और कमल की तो छोडि़ए झाड़ू तक भुनाने से नहीं चूक रही। हो सकता है कि मैं लोगों को नकारात्मक लगूं लेकिन याद आ रहा है कि संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष सच्चिदानंद सिन्हा थे। उनके निधन पर उपाध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को अध्यक्ष बनाया गया था। अम्बेडकर सिर्फ प्रारूप समिति के अध्यक्ष भर थे। वे संविधान निर्माता कहलाए। यदि सिर्फ संविधान निर्माता के तौर पर ही मान दिया जाना है तो बीजेपी को डॉ. प्रसाद को भी इसी रूप में अपनाना चाहिए। परन्तु...। अफसोस...। कांग्रेस भी प्रसाद को वेटेज नहीं देती, जबकि वे पहले राष्ट्रपति भी रहे। कारण...। भई साफ है प्रसादजी के पीछे वोट बैंक नहीं है। केवल दलित ही नहीं बल्कि सवर्णों तक को समानता का अधिकार देकर गए बाबा साहब अम्बेडकर एक बड़े वोट बैंक का आधार है और अपना उल्लू सीधा करने के लिए सभी पार्टियां उनका इस्तेमाल एक सीढ़ी की तरह करना चाहती है।
बीते साल सिरोही जिले में था। आदिवासी जिला है। हाइवे से बीस किलोमीटर साइड उतरकर देखिए, आबूरोड के आसपास। हिन्दुस्तान आज भी वहीं खड़ा है, जहां उसे १९४७ में गोरे अंग्रेज छोडक़र गए थे। या उससे भी कहीं पीछे हैं। इलाज के अभाव में प्रसूताएं मर जाती है और कुपोषण से मासूम। शराबी और कुपोषित आदिवासी पुरुष पचास से बाहर की जिन्दगी नहीं जीते। बाल विवाह, अशिक्षा, दुष्कर्म, चोरी-चकारी जैसी कौनसी समस्या है जो वहां नहीं है। ढंग का रोजगार तक नहीं है।
क्या वे गरासिया आदिवासी पिछड़े नहीं है। दलितों में तीन-चार जातियां ही क्यों आगे बढ़ रही है। ये जातियां अपने से नीचे वालों को ऊपर तक नहीं आने दी जाती। आपस में एससी एसटी एक्ट लागू नहीं होता। परन्तु इस जिले में ऐसा देखा कि इस वर्ग में आपस में ही एक बड़ा जातिवाद है, जिसका कोई तोड़ नहीं है। गरीब आदिवासियों का हक और हिस्सा तक नहीं दिया जा रहा। विधानसभा में विधायक किरोड़ीलाल मीणा ने मुद्दा उठाया, लेकिन मुद्दा फिर बैठ गया है। पहले भी उठा, लेकिन हर बार दम तोड़ जाता है। रामजी भी इधर नहीं देख रहे और अम्बेडकरजी भी। जातियों, समाजों के बीच वैमनस्य बढ़ रहा है। जो राजा थे, उनके वंशज आज भी मौज उड़ा रहे हैं। आपस में वही लड़ रहे हैं, जिनके पेट खाली है। अपनी-अपनी भूख के लिए एक दूसरे को गरियाने का दौर जारी है। राजनीति आम आदमी की भूख पर भारी है।
ऐसे में लगता है कि संविधान की बातें करने वाले टीवी के माइक के आगे जगह पा जाते हैं और अम्बेडकर की बात करने वाले अच्छे वोट। हम राम को भी मान रहे हैं और अम्बेडकरजी को भी, लेकिन उनकी ही नहीं मान रहे। वे जो कह गए, उसे करना जरूरी है। परन्तु हम एक साथ अधिक नावों की सवारी करना चाहते हैं और अक्सर फिसल जाते हैं। आज के दौर में यही हो रहा है...। देखें दौर कहां जाकर थमता है।