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Thursday, November 4, 2010

आत्म दीपो भव:


इस दीवाली पर तुम्हारे लिए
केवल खुशी की कामना

मुझसे नहीं होगी



सबको पता है
खुशी अकेली नहीं होती
उसी तरह
जिस तरह उजाला,
अंधेरे बिना नहीं होता


उसी तरह
जैसे सत्य!
झूठ की बुनियाद पर
खड़ा होकर उसी को
हिलाता है।


ठीक वैसे ही
तुम्हारे लिए कामना है
सत्य का उजास
तुम्हें अंधेरे से लडऩे
की ताकत दे
नहीं रहो तुम
उनके भरोसे
जिन्हें विश्वास नहीं
खुद की क्षमताओं पर।


हर अंधेरी गली में
आत्मज्ञान का सहारा मिलने की
शुभ कामना होगी
इस दीप पर्व पर तुम्हारे के लिए

केवल यही तीन शब्द
आत्म दीपो भव: ॥

कैसे केवल शुभत्व की कामना दूं, अशुभत्व भी साथ आएगा
इस दीवाली तुम्हें अशुभत्व का अनुभव मिले यही सोचता हूं
तुम्हारा सच्चा प्रशंसक हूं इसलिए काव्य तुम्हारे लिए रचता हूं
और तुम्हारी निष्कपट आंखों में झांकने से हर बार बचता हूं॥


और यह भी ध्यान रहे
भले अलग-अलग हों दीप
मगर सबका है एक उजाला
सबके सब मिल काट रहे हैं
अंधकार का जाला
किसी एक के भी अंतर का स्नेह न चुकने पाए
तम के आगे ज्योतिपुंज का शीश न झुकने पाए।

ब्लॉग लिखने वाले सभी कलम धनिकों को शुभकामनाएं

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