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Wednesday, March 2, 2011

हम तकरार में, वे गालियों के सार में




खुश थे जब डाले झूठ-झूठ के ही हार गले में
आइना सच का दिखाया तो तकरार में आ गए

बिकने से बचाते रहे उनको अक्सर नीलामी में
कीमत लगाने हमारी वे खुद बाजार में आ गए

भूख अब हमारे घर के दरवाजे पर ही सोती है
आजादी के बाद आरक्षण के बुखार में आ गए

घुटनों के बल चला करते थे रोते-लडख़ड़ाते
‘खेल’ क्या हुए वे सरकारी कार में आ गए

कभी नारे-जयकारे खुद के लगवाते नहीं थकते
आज बात वतन की चली तो उतार में आ गए

पहले दो-चार नारे लगा जिताया था दूसरों को
खान-पम्प-ठेके मिले, फिर व्यापार में आ गए

भीख मांगने की अदावत कहें कि देश का नसीब
जम्हूरियत में सिर गिना अब सरकार में आ गए

चार कलम घसीटिए दोस्त क्या हुए जनाब के 
हुजूर के सिर के कीड़े भी अखबार में आ गए

कभी स्वागतम्, अब घर पे लिख प्रवेश निषेध
साहब के साथ-साथ कुत्ते भी दरबार में आ गए

तकनीक भी लगी इनके दामन उजले करने में
ब्लॉग-फेसबुक-ट्विटर के अशरार में आ गए

हमारी ही कहते रहे तो बनेंगे मुंह मियां मिट्ठू
उनकी क्या कहें वे गालियों के सार में आ गए


3 comments:

  1. bat sahi he ki kissi ki tarif karo to wo tarif karne wall aapko thik lagta he or agar wo wyakti aapki burai karta he to kharab or aapki najar me sabse bura hoga...


    -Suresh Hemnani, pali
    coll no. 9352928383

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  2. चार कलम घसीटिए दोस्त क्या हुए जनाब के
    हुजूर के सिर के कीड़े भी अखबार में आ गए
    वाह बहुत खूब। सभी अशआर अच्छे लगे। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. अति उत्तम ,अति सुन्दर और ज्ञान वर्धक है आपका ब्लाग
    बस कमी यही रह गई की आप का ब्लॉग पे मैं पहले क्यों नहीं आया अपने बहुत सार्धक पोस्ट की है इस के लिए अप्प धन्यवाद् के अधिकारी है
    और ह़ा आपसे अनुरोध है की कभी हमारे जेसे ब्लागेर को भी अपने मतों और अपने विचारो से अवगत करवाए और आप मेरे ब्लाग के लिए अपना कीमती वक़त निकले
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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