प्रदीप है नित कर्म पथ पर
फिर अंधेरों से क्यों डरें!
हम हैं जिसने अंधेरे का
काफिला रोका सदा,
राह चलते आपदा का
जलजला रोका सदा,
जब जुगत करते रहे हम
दीप-बाती के लिए,
जलते रहे विपद क्षण में
संकट सब अनदेखा किए|
प्रदीप हम हैं जो
तम से सदा लड़ते रहे,
हम पुजारी, प्रिय हमें है
ज्योति की आराधना,
हम नहीं हारे भले हो
तिमिर कितना भी घना,
है प्रखर आलोक उज्ज्वल
स्याह रजनी के परे
श्रेष्ठ भारत लक्ष्य सदा है
फिर अंधेरों से क्यों डरें!
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 01/11/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
dhanywad
Deleteहाँ ,अँधेरे से क्या डरना !
ReplyDeleteसुन्दर ।
ReplyDeleteये रोशनी जग मे' सदा अमर रहे, ,,,
ReplyDeleteये रोशनी जग मे' सदा अमर रहे, ,,,
ReplyDeletenice post.....
ReplyDeleteThanks For Sharing
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ReplyDeleteइस लिंक पर जाएं :::::
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनायें