Monday, October 18, 2010
दशानन दहन
इंसानों का चेहरा (1)
कल था दशानन का दहन
लगना था नाभि में तीर अगन
उठाए धनुश राम खड़े थे।
कमर पर हाथ धरे
हनुमान भी अड़े थे।
दैत्य मुंह की खाए
धरा पर पड़े थे।
कुछ दशानन ऐसे भी जो
इंसानी चेहरा लिए
भीड़ में खड़े थे।
खुश क्यों आज (2).
राम ने जैसे ही नाभिकुण्ड में दागा तीर
महिला झुंड में बरसा खुशी का नीर
एक बोला ये इतना क्यों हरस रही है
चेहरे पर इतनी खुशी क्यों बरस रही है
दूजे ने कहा यह है राज
सुनो बहुत खुश ये आज
इसलिए
बार-बार आपस में तालियां टेक रही है
भाई भले रावण पुतला ही सही
पुरुश को जो जलते देख रही है।
राम नहीं बन पाते हैं (3)
हो गई आतिशबाजी चले पटाखे
और धराशायी हुआ रावण का ठूंठ
सच्चाई की लौ के आगे
नित की तरह जल गया झूठ
और वास्तव में नित की तरह ही जला
क्योंकि हम हर साल रावण जलाते हैं
पर राम नहीं बन पाते हैं।
बढ़ रहा है कद (4)
आज रावण का कद हर साल बढ़ रहा है
जैसे आतंकवाद हमारे सीने पर चढ़ रहा है।
नगरपालिका हर साल बढ़ाती है उसका कद
इधर भी बड़ी होती जा रही है आतंक की हद।
न जाने कब रावण का कद कबसे छोटा होना होगा
आतंक मिटाने को अब हमें और कितना खोना होगा।
पटाखे(5)
जैसे ही मेले का रावण जल गया
अहंकार की रस्सी का बल गया।
सभी लोग खुश हुए और खूब चहके
कांटों भरे स्टेडियम में चम्पा से महके।
और इतने में बजी रावण फिल्म की रिंगटोन।
जामवंत ने जेब से निकाल मोबाइल उठाया
बोला भरत भाई बस मिनट में ही निपटाया।
हां नो डाउट! नगरपालिका वालों की मदद रही
बजट में पैसे तो पूरे थे
पर पटाखे शायद अधूरे भी नहीं थे।
दशानन दहन
Reviewed by Unknown
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8:36:00 PM
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kavita me vakai dus ka dam hai
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