पाली। पाली शहर की औद्योगिक इकाइयों में प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक है कि अपराधियों को पकड़ने वाले प्रशिक्षित डॉग की घ्राणशक्ति भी जवाब दे जाती है। ऎसे में यहां काम करने वाले मजदूरों की हालत कैसी होती होगी अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।
औद्योगिक इकाइयों में होने वाली आपराधिक घटनाओं में सूत्र जुटाने में पाली का डॉग स्कवायड अक्सर फेल ही रहा है। वह मृतक के कपड़े और वार करने के हथियारों को सूंघकर कुछ ही कदम बढ़ा पाता है, लेकिन प्रदूषण उसे सफल नहीं होने देता।
पाली का स्थान 31वां
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल की 'व्यापक पर्यावरण प्रदूषण सूची' के तहत कुछ समय पूर्व जारी औद्योगिक कलस्टरों की व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार पाली को देश के 88 सर्वाधिक प्रदूषित (भू-जल-वायु) शहरों में 31वां स्थान दिया गया है। इसी सूची में राजस्थान का भिवाड़ी शहर छठे, जोधपुर 23वें व जयपुर 58वें स्थान पर है।
यह है कारण
औद्योगिक इकाइयों में अम्लीय-क्षारीय और गैसीय तत्वों की गंध इतनी तेज होती है कि वह अन्य महीन गंधों को दबा देती है। चूंकि फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर इसके आदी हो जाते हैं इसलिए उन्हें यह महसूस नहीं होता। पुलिस डॉग के एक केयर टेकर के अनुसार यह गंध के आधार पर अपराधी का पता करता है, लेकिन जैसे ही वह लाश अथवा अन्य सबूत को सूंघकर आरोपी की गंध की टोह लेता है तो फैक्ट्री के प्रदूषित वातावरण में मौजूद गंध उसे फेल कर देती है।
केस एक : मंडिया रोड स्थित एक औद्योगिक इकाई में 9 नवम्बर 2010 की रात हुए दोहरे मर्डर के मामले में सूत्र जुटाने आया डॉग कॉमिक मृतक के कपड़े और हथौड़ा सूंघकर कुछ ही कदम आगे बढ़ा और वहीं ठहर गया।
केस दो :
औद्योगिक द्वितीय चरण में मार्च 2011 में हुई चौकीदार की हत्या के मामले में भी कॉमिक तथ्य नहीं जुटा पाया और पुलिस पड़ताल में खास मदद नहीं मिल पाई।
डॉग की सफलता वातावरण की गंध पर निर्भर करती है। थार जैसे इलाकों में डॉग दस किलोमीटर से अधिक दूरी तक भी गंध के आधार पर जा सकता है। इण्डस्ट्रीज में यह समस्या रहती है, लेकिन फिर भी हमें डॉग के आधार पर कुछ सूत्र मिल जाते हैं।
अजयपाल लाम्बा, पुलिस अधीक्षक, पाली