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Friday, April 10, 2009

देखिए यह रिवाज है

देखिए यह रिवाज है
हमारे गरीब और महान भारत का
हैरान मत होइए
हमारी भारत सरकार के
46 मंत्रालयों के 1576 केंद्रीय अधिकारियों ने
विदेशों की यात्रा कर डाली
56 लाख 56 हज़ार 246 किलोमीटर
अर्थात इतने में आप पृथ्वी से चांद की
74 बार यात्रा कर सकते है
यात्रा में खर्च हुए 24458 दिन
1 अप्रैल 2005 से 30 अप्रैल 2008 •
यानि साढ़े तीन साल।
यात्रा में कुल खर्च
56 करोड़ 38 लाख तीन हज़ार तीन सौ रुपये
एक प्रश्न?

किसका था यह रुपया?
जवाब भारत सरकार का
अर्थात भारत की महान गरीब जनता का

तो...?
क्या सर! हिसाब-किताब में उलझ गए। मैं जानता हूं ऐसे आंकड़ों में ऐसा ही होता है। लेकिन ये यात्रा तो केवल अधिकारियों की है। नेताओं वाली का तो हिसाब भी नहीं है। अपन के पास। खाओ-पीओ ऐश करो, बस घाटे का बजट मत पेश करो का नारा बुलंद करने वाले नेता और इन अधिकारियों के लिए ऊपर वाले आंकड़ों से फर्क नहीं पड़ता। यहां तो ट्रेंड ही बन चुका है। सरकारी यात्रा करो और जेब भरो का ट्रेंड तो राजस्थान में भी चला। पैलेस ऑन व्हील्स की यात्रा में रेलवे के अधिकारी भी निरीक्षण के नाम पर नहीं चूके। हालांकि निरीक्षण का कोई सरकारी रिजल्ट नहीं निकला यह बात अलग है, लेकिन इन अधिकारियों के घरेलु बजट का सालभर का रिजल्ट अच्छा हो गया।
अगले नुक्कड़ की चर्चा में तो करारा निष्कर्ष निकला। चर्चा चल रही थी कि ये तो बिचारे यात्रा ही करके आए हैं। कई तो शहीदों
में कफन गए। करगिल में शायद इसीलिए एलओसी क्रॉस करने से मना किया था कि ज्यादा सैनिक शहीद होंगे तो कफन भी ज्यादा निकलेंगे और मुनाफा भी ज्यादा होगा। ऐसे में इन अधिकारियों का भ्रष्टाचार तो बहुत थोड़ा है। वहीं भ्रष्टाचार के सिरमौर कहे जाने वाले तेलगी का माल तो आज तक पता नहीं चला है कहां छुपाया हुआ है। अधिकारियों की बिचारों की बिसात ही क्या है।
वह नेता ही क्या जो सूटकेस भरके नहीं लेता। और तो और सरकारी अधिकारियों की तो पहचान भी ऊपरवाली इनकम से होती है। एक अधिकारी ने ईमानदारी दिखाने का प्रयास करते हुए नेताजी का भ्रष्टाचार खोलने की कोशिश की तो सरकार उसके पक्ष में खड़ी नजर आई। इसलिए आप तो बिल्कुल लोड मत लो हिन्दुस्तान की जनता का सार्वजनिक पैसा है।

तो प्यारे डाबर का च्यवनप्राश खाओ
खूब खाओ-खूब पीयो और पचाओ।
इसे खाकर सुखराम देश को खा गए।
नरसिम्हा बुढ़ापे में भी खूब पचा गए।
तो आप तो अभी खूब खा सकते हैं और पचा सकते हैं। खाओ-पीयो और खाने-पीने का कॉफिडेन्स बढ़ाओ। क्योंकि कई नकली डाक टिकट छाप-छापकर असली चुनावी टिकट ले आए और कुरसियों पर जा बैठे।

तभी तो काला दामन सफेद झक्क हो गया
और उजले सच का मुंह फक्क हो गया।
pradeep singh beedawat

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