स्वामी जी की वह रचना मुझे बहुत अच्छी लगी जिसमे कहा गया
सर्प अपने फन तभी फैलाता है, जब उसे चोट लगती है।
अग्नि तभी धधक कर जलती है जब वह बुझने को होती है।
शेर की गर्जना तभी लोगो को कम्पित करती है,
जब वह खुले रेगिस्तान में दहाड़ता है।
बादलों से बरसात तभी होती है,
जब बादलों के ह्रदय में बिजली तड़पती है।
वैसे ही एक इन्सान की उत्तमता तभी सामने आती है,
जब वह अपने अंतरात्मा से काम लेता है ।
अतः ------
चाहे आँखें धुधली हो जाय, चाहे कान बहरे हो जाय।
चाहे दोस्ती टूट जाए, चाहे प्यार तबाह हो जाए।
चाहे भाग्य तुम्हे हजार ग़मों के कुएं में धकेल दे,
चाहे प्रकृति तुमसे नाराज हो जाए,
और तुम्हे तहस नहस कर दे,
यदि तुम स्वयं को जानते हो,
तो तुम ईश्वरीय हो, तुम्हे कोई नहीं हरा सकता।
क्या मुमकिन क्या नामुमकिन बगैर किसी परवाह के,
आगे बड़े चलो, बड़े चलो, बड़े चलो
और जीत कर दिखा दो पुरी दुनिया को,
इस भारतीय आत्मा की महान शक्ति को।
सर्प अपने फन तभी फैलाता है, जब उसे चोट लगती है।
अग्नि तभी धधक कर जलती है जब वह बुझने को होती है।
शेर की गर्जना तभी लोगो को कम्पित करती है,
जब वह खुले रेगिस्तान में दहाड़ता है।
बादलों से बरसात तभी होती है,
जब बादलों के ह्रदय में बिजली तड़पती है।
वैसे ही एक इन्सान की उत्तमता तभी सामने आती है,
जब वह अपने अंतरात्मा से काम लेता है ।
अतः ------
चाहे आँखें धुधली हो जाय, चाहे कान बहरे हो जाय।
चाहे दोस्ती टूट जाए, चाहे प्यार तबाह हो जाए।
चाहे भाग्य तुम्हे हजार ग़मों के कुएं में धकेल दे,
चाहे प्रकृति तुमसे नाराज हो जाए,
और तुम्हे तहस नहस कर दे,
यदि तुम स्वयं को जानते हो,
तो तुम ईश्वरीय हो, तुम्हे कोई नहीं हरा सकता।
क्या मुमकिन क्या नामुमकिन बगैर किसी परवाह के,
आगे बड़े चलो, बड़े चलो, बड़े चलो
और जीत कर दिखा दो पुरी दुनिया को,
इस भारतीय आत्मा की महान शक्ति को।