Latest News

Sunday, December 27, 2009

नारी विरोधी जिस्मफरोशी

आदरणीया वर्षाजी के ब्लॉग पर लिखा लेख जायज हो जिस्मफरोशी से प्रेरणा ली और लिखने का मानस बनाया। हालांकि एक ऐसा विषय है, जिस पर मैंने पहले कभी विचार नहीं किया। ब्लॉग में शाहिदजी मिर्जा द्वारा लिखी कविता पढ़ी तो वाकई लगा मैं कुछ लिखुं। इसके पीछे प्रेरणास्त्रोत वह लेख ही है।

http://likhdala.blogspot.com/2009/12/blog-post_23.html


मुझे यह भी समझ नहीं आता कि तुम्हें क्या सम्बोधन दूं? चैतन्यता की परिभाषा जहां समाप्त होती है वहां से तुम्हारे दैदिप्यमान तेज का पुंजीभूत प्रकाश प्रारंभ होता है। छोटा सा मायावाद समझ नहीं आया तो यह मूढ़ बुद्धि तुम्हें क्या समझ पाएगी, लेकिन इतना जरूर है कि तुम कुटिल मायावी नहीं हो। कभी तुम जीवन मरुस्थल के आतप में एक शीतल वृक्ष की छांह जैसी हो तो कभी अग्नि की उष्णता से भी तप्त। यह बात मुझे अब महसूस होने लगी है, जब अपने जीवन के 23 अनमोल बसन्त उश्रृंखलता में गंवा चुका हूं।

बात तुम्हारे द्वारा जिस्मफरोशी की आती है तो लगता है कि कई वर्ग इसके लिए जिम्मेदार है। नारी जो कि राष्ट्र की संजीवन शक्ति है। उसका व्यापार बड़े पैमाने पर चलना लोकतंत्र के चेहरे पर एक स्याह धब्बा है, जिसे मिटाना बहुत बड़ी चुनौती है।

बहुत सी महिलाएं मजबूरी में यह धंधा करती है और कई शौक से आती है बाद में आदत और फिर स्वभाव। कहीं-कहीं ऐसा भी होता है। पर उन्हें कौन रोके जो शौक से आतीं हैं। घर से दूर रहकर पढ़ने वाली बालाएं जो अय्याशी के लिए कुछ चांदी के टुकड़े चाहती है और उसके बदले अपना शरीर बेचती है।

जिस्मफरोशी की बात जायज नहीं कही जा सकती लेकिन इस पर चिंतन भी होना चाहिए। मैं गलत सोच रहा हूं या सही मुझे नहीं पता, लेकिन शçक्त जैसा ही स्वरूप रखने वालियों में कमसे कम इतनी सोच तो होनी ही चाहिए कि भारतीय परपरा रूपी सूर्यदेव को ठोकर मारकर वे किसका आह्वान करके देवाहुति मंत्र पढ़ रही हैं। अपने संरक्षण के लिए स्वयं को जागरूक होना होगा। भीतर नव उजाले की चेतना विकसित करने का दर्द भरना होगा। भले आप कुछ नहीं कर पाएं। जब आपके जेहन में यह दर्द रहेगा तो आने वाली वे पीढ़ियां जो तुम्हारी कोख से जन्म लेंगी। तुम्हारे दर्द को समझेंगी और सार्थक क्रियान्विति के लिए प्रयास करेंगी।

दूसरी बात उनके लिए जो नारी को केवल एक जिस्म मानते हैं उनके लिए जिस्मफरोशी की व्यवस्था नीति संगत हो सकती है, लेकिन ऐसे लोगों का स्थान जंगल से बाहर नहीं आना चाहिए और न ही उन्हें इंसानों की किसी श्रेणी से संबोधित किया जाना चाहिए। ऐसी नारी विरोधी मानसिकता वाले फैसलों पर मुहर लगाने से पहले कुछ बातों पर गौर किया जाना चाहिए।

नारीशक्ति का अपमान

एक कर्ण! सूर्य शिष्य! सूर्यपुत्र! कौन्तेय! प्रथम पाण्डव! अथवा दुभाüग्य का सहोदर!
जीवन में केवलमात्र अपराध यही किया कि मानसिक आवेगों के गतिरोध में एक पतिव्रता स्त्री को कुलटा और विहरिणी कह दिया। सूर्यपुत्र होने के बावजूद इसका मूल्य उसे अपना जीवन देकर चुकाना पड़ा और सदियों के लिए खलनायक साबित हो गया। भले उसके दिव्य कवच-कुण्डल वाले शरीर को इस अपराध की सजा देने के लिए योगेश्वर श्रीकृष्ण को भी छल का सहारा लेना पड़ा। क्या उसके जैसा या उससे थोड़ा सा भी मिलता जुलता अब कोई तुम्हारी कोख पैदा नहीं करेगी। क्या कोई कुन्ती अज्ञानता में भी सूर्य का आह्वान करके देवाहुति मंत्र नहीं पढ़ेगी।

एक द्रोपदी! हां वही पांचाली। एक रजस्वला स्त्री जिसे दु:शासन ने वस़्हीन करके दुर्योधन की जांघ पर बिठाने का प्रयास मात्र किया और इतना बड़ा युद्ध हो गया। महाभारत हो गया। जिसमें लाखों यौद्धाओं का खून बह गया। आज सैकड़ों बालाएं रोज लूटी जाती है, लेकिन शक्ति पुत्रों में से किसी एक का भी खून नहीं खौलता। जैसे उनके रक्त को शीत ज्वर हो गया या उनकी चैतन्यता को काठ मार गया। क्या स्त्री शक्ति इसी तरह लूटी जाएगी और हम उसमें सहभागी बनेंगे? अथवा देखते रहेंगे। हो क्या गया है हमारे अहसासों को। कहां गया हमारा ईश्वरीय भाव। मेरी तो सोच यह है कि राष्ट्र को नारी शक्ति की महत्ता समझनी होगी और उसे उचित समान देना होगा न कि जिस्मफरोशी को वैधानिक मान्यता।

क्योंकि सीमाओं पर वे लोग तो कपट और छल से लड़ते हैं
हमारे सैनिक मां की दुआ और प्रतिव्रताओं के बल से लड़ते हैं।

बदनाम बस्तियां कविता में कवि जगदीश सोलंकी ने लिखा है
जब गुज़रा एक दर से तो थरथराए पैर

मंदिर के पुजारी भी वहां करने आए सैर
चंदन का तिलक देख के हैरान हो गया
ये आदमी था किस तरह हैवान हो गया
इस देश की अश्लील तबाही को रोकिए
वदीZ पहन के जाते सिपाही को रोकिए
माया से बस यहां काया ही सस्ती है
भूले से भी मत आना ये बदनाम बस्ती है

Total Pageviews

Recent Post

View My Stats