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Wednesday, December 9, 2009

मैं आंसू



मैं आंसू
हृदय की अंतरतम् विवशता का सत्कार
विरह-वेदना का सशक्त हस्ताक्षर

साक्षात पीड़ा का अनुभाविक प्रतिनिधि
दु:ख और दर्द का मौन साक्षात्कार

भावाभिव्यक्ति का मूक माध्यम तो कभी
अनिवर्चनीय खुशी का खामोश प्रतिबिम्ब

कभी कलेजे तो कभी आंखों से
चुपचाप बहता हूं
कभी निश्चल तो
कभी चंचल होकर
गहरी बात कहता हूं

दुनिया में बहुत हैं
इसे पीने वाले
कम नहीं
इसके साथ जीने वाले भी

हां कई ऐसे भी है
जो मुझे मार डालते हैं
अपनी आंखों में ही घोटकर

बनावटभरी इस दुनिया में
बनावट ओ साज सिंगार किया है
हंसी और खुशी दोनों ने।

मैं आज भी नहीं बदला
न ही बदला
मेरा रूप, रंग, स्वाद और अर्थ
मैं रंगहीन रहा,
लेकिन अर्थहीन नहीं।

करता हूं उनकी मदद
जब वो खामोश
और निशब्द होते हैं

जिनकी आत्मा के शब्द
ज़बां का साथ नहीं देते

मैं चुपचाप केवल तब
केवल और तभी बहता हूं
जब बहरे और स्वार्थी कानों से
कहना चाहता हूं बहुत कुछ
मौन होकर।

या उस समय जब
जब नहीं होते
किसी के पास शब्द
अपनी पीड़ा, विरह, वेदना,
दर्द, हंसी, खुशी और भावों
को कहने के।

तब मौन होकर धीरे-धीरे
आंखों से गालों पर दिखता हूं
विवश और मूक ज़बां की भाषा
खारे पानी से लिखता हूं।

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