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Friday, November 20, 2009

मेरी मां

मैं तुम्हे लफ्ज-लफ्ज पढ़ना चाहता हूं

देखना चाहता हूं कि तुम क्या हो
चाहता हूं तुम्हें अक्षर-अक्षर समझना

तब तुम मुझे मिलती हो गीता के श्लोकों में
कुरान की आयातों में
बाइबिल की शिक्षाओं में गुरु ग्रंथ के शबदों में
तुलसी की चौपाइयों में
सूर के छन्दों में, मीरां के गीतों में

तब सोचना चाहता हूं कि
तू सब रिश्तों में सबसे बड़ी क्यों है
क्यों मैं सदियों से तुझे सबसे बड़ा बताता हूं

तुझ पर कविताएं रचता हूं
कहानियां लिखता हूं,
क्यों तू मेरे लिए उससे भी झगड़ पड़ती है
जो तेरा परमेश्वर है

जितना सोचता हूं उतना उलझता हूं
उस उलझन का उपाय खोजते-खोजते
थक जाता हूं तो तेरा आ¡चल ही क्यों सुकूं देता है।

इन सवालों के जवाब ढूंढते-ढूंढते
क्यों गुजार चुका हूं कई सदियां
शायद इसलिए क्योंकि तू दुनिया की सबसे सुन्दर कृति है
तेरी भावनाओं को समझ पाना मेरे बस की बात नहीं

पर तू मुझे परख लेती है
क्योंकि तेरी ही गोद से ले चुका हूं मैं हजारों जन्म
तू इस सृष्टि में लाने का हेतु है और तू ही सहारा।

तब जवाब मिलता है कि तू उस शक्ति का स्वरूप है
जो इस सृष्टि का कारण है
इसलिए तो तुम शक्तिस्वरूपा मेरी मां हो।

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