- प्रदीपसिंह बीदावत
पितृ तर्पण के पखवाड़े के नाम से मशहूर श्राद्ध पक्ष भी महंगाई की मार से अछूता नहीं रहा। कहना गलत नहीं होगा कि बढ़ती महंगाई के कारण श्राद्ध की खीर इन दिनों पंडितों को फीकी लग रही है। कई यजमान तो महंगाई को देखकर पंडितों से खर्च को उनकी जेब के अनुसार एडजस्ट करने की गुजारिश भी कर रहे हैं।
फैमिली से थाली तक
किसी समय श्राद्ध के मौके पर भोज के लिए पंडितजी का पूरा परिवार आमंत्रित होता था, लेकिन अब स्थिति यह है कि परिवार से मात्र एक सदस्य को जीमण के लिए न्यौता आता है। परिवार के सदस्यों के लिए अलग-अलग जगह से न्यौता आने के कारण यजमानों के लिए पंडितजी की "डेट" की समस्या भी खत्म हो चली है। कई जगह तो यजमान की ओर से थाली और दक्षिणा घर पर ही भिजवाई जाने लगी है।
कई शॉर्टकट भी निकले
महंगाई के चलते श्राद्ध के मौके पर ग्यारह और इक्कीस पंडितों का ब्राह्मण भोज तो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बस के बाहर हो चुका है। कई परिवार तो घर पर भोजन तैयार करवाने की बजाए होटल से पैकिंग खाना भी मंगवा रहे हैं। इसी तरह तर्पण के दौरान पूर्वजों के नाम मावा चढ़ाने का शॉर्टकट भी यजमानों ने निकाल लिया है।
कहानी बना कमर तक पानी
पितरों का तर्पण करते समय कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अघ्र्य देने की परम्परा भी पानी के अभाव में छटपटा रही है। जिले के लगभग सभी प्रमुख जलस्त्रोत सूख चुके हैं। ऎसे में परम्परानुसार अघ्र्य कहां दिया जाए इस बात को लेकर लोग पशोपेश में रहते हैं। कई लोग तो लोटे के माध्यम से जल चढ़ाकर इतिश्री कर लेते हैं तो कई स्वीमिंग पूल का सहारा भी लेते हैं। पंडित विक्रम कुमार ने बताया कि इस समस्या के चलते उनको स्वीमिंग पूल में तर्पण करना पड़ा।
कुछ ऎसे हैं भाव
पिछले वर्ष श्राद्ध के समय शक्कर 16 रूपए किलो थी, अब 34 रूपए किलो है। इसी तरह दाल के भाव भी करीब ढाई गुना बढ़ चुके हैं। वहीं दूध और चावल की रेट भी खासी बढ़ी है।
एक-दो जगह गया था। पहले वाला मजा नहीं रहा। महंगाई की वजह से श्राद्ध पक्ष में यजमानों की जेब पर भार तो पड़ ही रहा है। वे अपने हिसाब से श्राद्ध का खर्च एडजस्ट करने की गुजारिश भी करते हैं।"
- पंडित विजय व्यास, अध्यक्ष श्रीमाली नवयुवक मंडल, जालोर
श्राद्ध का खर्च पिछले वर्ष के मुकाबले दोगुना हो गया है। पैसे वाले लोग तो जैसा कहा जाता है वैसा खर्च करते हैं, लेकिन विघिपूर्वक श्राद्ध करना गरीब परिवारों के तो बूते के बाहर की बात हो चली है।"
- अशोक कुमार दवे, जालोर
एक जमाना था जब श्राद्धपक्ष में पंडितजी के पेट का खास ध्यान रखने के लिए यजमान मालपुए, खीर और हलवे समेत कई मीठे व्यंजन मनोयोग से तैयार करवाते थे। अब स्थिति ऎसी है कि मीठे के नाम पर शक्कर के भाव सुनते ही गुड़ के चूरमे से काम चलाना पड़ रहा है।
पितृ तर्पण के पखवाड़े के नाम से मशहूर श्राद्ध पक्ष भी महंगाई की मार से अछूता नहीं रहा। कहना गलत नहीं होगा कि बढ़ती महंगाई के कारण श्राद्ध की खीर इन दिनों पंडितों को फीकी लग रही है। कई यजमान तो महंगाई को देखकर पंडितों से खर्च को उनकी जेब के अनुसार एडजस्ट करने की गुजारिश भी कर रहे हैं।
फैमिली से थाली तक
किसी समय श्राद्ध के मौके पर भोज के लिए पंडितजी का पूरा परिवार आमंत्रित होता था, लेकिन अब स्थिति यह है कि परिवार से मात्र एक सदस्य को जीमण के लिए न्यौता आता है। परिवार के सदस्यों के लिए अलग-अलग जगह से न्यौता आने के कारण यजमानों के लिए पंडितजी की "डेट" की समस्या भी खत्म हो चली है। कई जगह तो यजमान की ओर से थाली और दक्षिणा घर पर ही भिजवाई जाने लगी है।
कई शॉर्टकट भी निकले
महंगाई के चलते श्राद्ध के मौके पर ग्यारह और इक्कीस पंडितों का ब्राह्मण भोज तो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बस के बाहर हो चुका है। कई परिवार तो घर पर भोजन तैयार करवाने की बजाए होटल से पैकिंग खाना भी मंगवा रहे हैं। इसी तरह तर्पण के दौरान पूर्वजों के नाम मावा चढ़ाने का शॉर्टकट भी यजमानों ने निकाल लिया है।
कहानी बना कमर तक पानी
पितरों का तर्पण करते समय कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अघ्र्य देने की परम्परा भी पानी के अभाव में छटपटा रही है। जिले के लगभग सभी प्रमुख जलस्त्रोत सूख चुके हैं। ऎसे में परम्परानुसार अघ्र्य कहां दिया जाए इस बात को लेकर लोग पशोपेश में रहते हैं। कई लोग तो लोटे के माध्यम से जल चढ़ाकर इतिश्री कर लेते हैं तो कई स्वीमिंग पूल का सहारा भी लेते हैं। पंडित विक्रम कुमार ने बताया कि इस समस्या के चलते उनको स्वीमिंग पूल में तर्पण करना पड़ा।
कुछ ऎसे हैं भाव
पिछले वर्ष श्राद्ध के समय शक्कर 16 रूपए किलो थी, अब 34 रूपए किलो है। इसी तरह दाल के भाव भी करीब ढाई गुना बढ़ चुके हैं। वहीं दूध और चावल की रेट भी खासी बढ़ी है।
एक-दो जगह गया था। पहले वाला मजा नहीं रहा। महंगाई की वजह से श्राद्ध पक्ष में यजमानों की जेब पर भार तो पड़ ही रहा है। वे अपने हिसाब से श्राद्ध का खर्च एडजस्ट करने की गुजारिश भी करते हैं।"
- पंडित विजय व्यास, अध्यक्ष श्रीमाली नवयुवक मंडल, जालोर
श्राद्ध का खर्च पिछले वर्ष के मुकाबले दोगुना हो गया है। पैसे वाले लोग तो जैसा कहा जाता है वैसा खर्च करते हैं, लेकिन विघिपूर्वक श्राद्ध करना गरीब परिवारों के तो बूते के बाहर की बात हो चली है।"
- अशोक कुमार दवे, जालोर