यह नारी है। कहने को तो क्लिष्ट शब्दजाल, सौंदर्य, घुंघरू, पायल, मेहंदी, कुलगौरव, विरह, वेदना, करूणा और भी न जाने अनगिनत संबोधन साहित्यकारों ने इसे दिए। यह कहा जाए कि संसार सागर नारी रूपी नीर के बगैर सूखा है तो गलत नहीं होगा। भारत समेत विभिन्न देशों में अनगिनत महिलाओं ने प्रतिनिधित्व कर बेहतर शासन और व्यवस्था कायम की है। देश ने महिलाओं को पंचायती राज व्यवस्था में स्थाई प्रतिनिधित्व देकर इसके स्वरूप को विराट करने की कोशिश की। पचास साल पहले देश में लागु हुए पंचायती राज पर नजर डालें तो जिले में आज भी महिलाओं की भूमिका जनप्रतिनिघि के तौर पर नगण्य नजर आती है।
वहीं दूसरा चेहरा ऎसा है जो श्रमिकवर्ग के नाम से जाना जाता है लेकिन इस व्यवस्था में अपनी अलग छाप छोड़ी है। कहना गलत नहीं होगा कि परिवार में व्याप्त अर्थाभाव का उत्तर तलाशते इन कोमल हाथों ने मात्र ढाई साल पहले अस्तित्व में आई राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की कठोर कुदाली को शिद्दत से सहेजा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। पंचायतीराज व्यवस्था के स्वर्णजयंती के मौके पर राजस्थान पत्रिका ने महिलाओं के इन दो वर्गों (महिला जनप्रतिनिघि और महिला श्रमिक) की जिले में स्थिति टटोली तो कई तथ्य सामने आए।
प्रदीपसिंह बीदावत
जालोर, 1 अक्टूबर
इसे आरक्षण अनिवार्यता की मजबूरी ही कहा जाएगा कि पंचायती राज ने घर की चारदीवारी से बाहर निकालकर महिलाओं को वार्ड पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, प्रधान, जिला परिषद सदस्य और जिला प्रमुख तक का दर्जा दिया। बावजूद इसके यह विडम्बना ही कही जाएगी कि अधिकांश जगह इनका काम उनके संबंधी पुरूष ही देखते हैं। आज भी जिले में होने वाली अधिकांश बैठकों में इन प्रतिनिधियों का मौन पंचायती राज व्यवस्था के आधार को खोखला करता नजर आता है। जिले का सबसे बड़ा पद भी महिला के नाम है, लेकिन पंचायती राज की सभी स्तरों की बैठकों में महिलाओं की मौजूदगी अक्सर नगण्य रहती है। यदि महिलाएं आती भी है तो उनकी आवाज कभी घूंघट से बाहर नहीं आई। महिला जनप्रतिनिघियों की गैरहाजिरी के कारण जिले की ग्राम पंचायतों पर होने वाली ग्रामसभाओं में स्थानीय महिलाओं की उपस्थिति नजर नहीं आती।
...तो "एसपी" भी होंगे
ग्राम पंचायत यदि सरपंच महिला है तो एसपी (सरपंच पति) का पद अपने-आप बन जाता है। वहीं कई जगह एसडीएम (सरपंच दा मुण्डा) भी पंचायती राज के कार्यो में टांग रखता है। ऎसे में अफसरशाही के लिए तथाकथित "एसपी" और "एसडीएम" की राय लेनी जरूरी हो जाता है तो आम जन भी अपना जनप्रतिनिघि उन्हें ही मानता है।
यह तस्वीर दूसरी है
जिले में पंचायती राज व्यवस्था के तहत महिला जनप्रतिनिघियों के कार्यो पर नजर डालें तो उनका मौन इस व्यवस्था पर व्यंग्य करता है, लेकिन दूसरा चेहरा सुखद है। मात्र 28 प्रतिशत महिला साक्षरता वाले जिले में महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी रोजगार योजना में 80 प्रतिशत भागीदारी रखती है। ईमानदारी से टास्क पूरी करके सम्मानजनक भुगतान प्राप्त करने वाली इन्हीं बहू-बेटियों ने जालोर का नाम पूरे देश में ऊपर किया और जिले को नरेगा एक्सीलेंस अवार्ड दिलाया।
नरेगा कार्यो में महिला मेट लगाने का सिलसिला जालोर से प्रारंभ हुआ। जिस जिले महिला साक्षरता दर तीस प्रतिशत का आंकड़ा वर्षो से पार नहीं कर पाई। यहां के बहुत से जनप्रतिनिघियों को हस्ताक्षर करने नहीं आते वहां पौने दो हजार प्रशिक्षित महिला मेट केल्कूलेटर पर हिसाब करना जानती हैं। मोबाइल मेंटेन करती है और अपने बैंक संबंधी कामकाज खुद देखती है। तत्कालीन जिला कलक्टर रोहित कुमार के समय यह बात सामने आई कि सरकार की ओर से चलाए जाने वाले अकाल राहत व अन्य फेमीन कार्यो में करीब पच्चीस प्रतिशत पुरूष ऎसे होते हैं जो ठाले बैठकर भुगतान उठाते हैं। प्रशासन ने ऎसे लोगों को "परजीवी" की संज्ञा देते हुए पांच-पांच श्रमिकों को टास्क के तहत काम देना प्रारंभ किया गया और पांचवी से अघिक शिक्षित महिलाओं को मेट लगाना प्रारंभ किया। महिला मेट लगने और पांच की टास्क होने के बाद ऎसे "परजीवियों" को लोगों ने नकार दिया और अपनी टास्क में नहीं लिया। फलस्वरूप ऎसे लोगों की कार्यविघि में सुधार हुआ और आशा से अधिक परिणाम मिले।
महिला मेट लगाने के बाद प्रशासन के सामने आए तथ्य
- महिला मेट पुरूष की बजाए अधिक ईमानदार होती है।
-महिला मेट अपनी साथी महिलाओं को काम करके पूर्ण भुगतान के लिए प्रेरित करती हैं।
- टास्क में काम कर रही महिलाएं अपना दिया हुआ कार्य दैनिक पूरा करती है और साथी महिलाओं का हौसला बढ़ाती है।
- नरेगा पर आने वाली महिलाएं अवकाश पर कम रहती हैं।
- एक बार समझाने के बाद गलतियों की संभावना कम।
- हिसाब-किताब में शुद्धता रखती हैं।
-रिकार्ड का बेहतर संधारण करती हैं।
जिले में महिला मेटों की स्थिति
अघिकांश मेट आठवीं से अघिक शिक्षित हैं और हिसाब-किताब में दक्ष हैं। जिला परिषद के वरिष्ठ लेखाघिकारी ईश्वरलाल शर्मा का कहना है कि इनका हिसाब-किताब उतना ही दक्ष होता है जितना कि पंचायत समिति के अभियंताओं का।
जिले में वर्तमान में कार्यरत महिला मेट : 491
महिला पुरूष मेट का अनुपात : 37:63
जिले में कुल प्रशिक्षित महिला मेट : 1757
शिक्षा की कमी बड़ा कारण...
पंचायती राज के कारण परिवर्तन तो हुआ ही है। जालोर में नरेगा कार्यो में 90 प्रतिशत महिलाएं काम कर रही है यह सुखद बात है, लेकिन महिला जनप्रतिनिघि शिक्षा की कमी के कारण बैठकों में नहीं आ पातीं।
- श्रीमती मंजू मेघवाल
जिला प्रमुख, जालोर