Latest News

Sunday, September 5, 2010

शिक्षक दिवस पर विशेष - दो व्यंग्य

धनुष किसने तोडा ?



एक दिन सरपंच साहब को जाने क्या सूझी कि चल पड़े स्कूल की ओर। यह जानने कि गांव के बच्चों का आईक्यू कैसा'क है। स्कूल पहुंचे तो एक भी अध्यापक कक्षा में नहीं। घंटी के पास उनींदे से बैठे चपरासी से जब पूछा सारे मास्टर कहां गए तो पता चला कि पशुगणना में ड्यूटी लगाने के विरोध में कलेक्टरजी को ज्ञापन देने शहर गए हैं। सरपंचजी ने सातवीं कक्षा के एक बच्चे से पूछा "बताओ शिव का धनुष किसने तोड़ा।" जवाब आया " सरपंचसा! कक्षा में सबसे सीधा छात्र मैं हूं, मैंने तो नहीं तोड़ा। हां चिंटू सबसे बदमाश है, उसी ने तोड़ा होगा। वह आज छुट्टी पर भी है। शायद धनुष टूट जाने के डर से नहीं आया हो।" सरपंचजी ने माथा पीट लिया और वापस लौट गए। शिक्षक लौटे तो चपरासी बोला "सरपंचजी आए थे और बच्चों को कुछ पूछ रहे थे और गए भी भनभनाते हुए हैं।" प्रधानाध्यापक महोदय का पानी पतला हुआ। कक्षा में आए और पूछा "सरपंचजी क्या कह रहे थे।" बच्चों ने सारी बात बता दी। अब प्रधानाध्यापकजी ने बच्चों से पूछा "बच्चों किसी से गलती से धनुष टूट गया तो कोई बात नहीं। केवल यह बता दो धनुष तोड़ा किसने।" बच्चों ने तोड़ा हो तो बोलें। खामोशी देखकर तुरन्त अध्यापकों की बैठक बुलाई और कहा "देखो! शिवजी का धनुष किसी ने तोड़ दिया है और शिवजी कौन है यह भी हमें नहीं मालूम। उनकी शायद ऊपर तक पहुंच हो। पीटीआईजी आप इस मामले की जांच कर कल तक रिपोर्ट दीजिए।" शारीरिक शिक्षक महोदय ने साम, दाम, दंड, भेद आजमाए पर पता नहीं लगा पाए। प्रधानाध्यापकजी को चिंतातुर देख विद्यालय के बाबू बोले "साहब मैं तो कहता हूं कि जिला शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखकर मामले से अवगत तो करवा ही दिया जाना चाहिए। नहीं तो बाद में परेशानी खड़ी हो जाएगी। शायद शिवजी आलाकमान तक बात ले जाएं और अपन को ऐसे गांव में नौकरी करनी पड़े जहां बिजली और बस भी मर्जी से आती हो।" प्रधानाध्यापकजी ने डीईओ को पत्र लिखा "महोदय किसी ने शिवजी का धनुष तोड़ दिया है। हम अपने स्तर पर पता लगाने का प्रयास कर रहे हैं और आपके कानों तक बात डलवा रहे हैं।" तीन दिन बाद जवाब मिला। "प्रधानाध्यापकजी! इस बात से हमें कोई लेना देना नहीं कि धनुष किसने तोड़ा। हां याद रहे यदि सरपंच की ऊपर तक पहुंच है और कोई लफडा हुआ तो धनुष के पैसे आपकी पगार में से लिए जाएंगे।"
आज के एकलव्य का अंगूठा
गली-खोरियां खुल रहीं शिक्षा की दुकान,
बैठ सुज्ञानी की जगह अज्ञानी दे ज्ञान।
ग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक शिक्षक दिवस निकल गया। शिक्षक दिवस कलियुग के गुरुजनों की वंदना का दिन है। सतयुग से द्वापर तक गुरु पूर्णिमा गुरुजनों का दिन रहा, जिस पर उनकी पूरी पंचायती चलती थी। जो गुरुदक्षिणा मांग ली, शिष्य को देनी ही पड़ती थी। चलिए द्वापर के किरदारों को कलियुग में लाते हैं। अर्जुन के पिता राशन के डीलर और एकलव्य पिछड़ी जाति का। गुरुजी एकलव्य को एडमिशन नहीं देना चाहते थे पर एकलव्य आरक्षण का लाभ लेकर गले पड़ ही गया। मरते बेचारे क्या न करते और एकलव्य को पढ़ाना प्रारंभ कर दिया। मेधावी होने के बावजूद गुरुजी की कारस्तानी से एकलव्य हमेशा पिछड़ जाता। अर्जुन नित्यप्रति गुरुजी के वहां राशन का केरोसीन, चावल, शक्कर और गेहूं पहुंचाता और गुरुजी नंबरों की मेहरबानी रखते। इसी तरह दोनों दसवीं में आ गए। एकलव्य बोला "गुरुजी अबके तो बोर्ड है आप अर्धवार्षिक के दश प्रतिशत के अलावा कुछ नहीं कर पाएंगे और तेरा क्या होगा रे अर्जुन! "

गुरुजी टेंशन में कहीं अर्जुन न पिछड़ जाए इसलिए गुरु ने अब चाणक्य नीति अपनाई। अर्जुन के साथ-साथ एकलव्य को ट्यूशन पर बुलाना शुरू कर दिया वो भी मुफ्त ! एकबारगी तो एकलव्य भी चक्कर खा गया कि ये क्या हो गया। परीक्षा के समय विद्यालय के अंतिम दिन दोनों को बुलाया और कहा "आज आपका अंतिम दिन है। मुझे गुरुदक्षिणा चाहिए।" अर्जुन ने कहा "गुरुदेव जब तक आपका ट्रांसफर दूसरी जगह नहीं हो जाता राशन का सामान पहुंचाता रहूंगा।" अब एकलव्य की बारी थी बोला "मैं तो एकलव्य ठहरा जो मांगेंगे वह दूंगा।"

गुरु ने द्वापर का वार कलियुग में दुबारा किया और कहा "दाहिने हाथ का अंगूठा चाहिए।" एकलव्य ने बिना दूसरा शब्द बोले दाहिने हाथ का अंगूठा समीप पड़े पत्थर से कुचल लिया। गुरु की बांछे खिल गई। अर्जुन को सिरमौर रखने का सपना जो पूरा हो रहा था। पनीली हो चुकी आंखों के बीच एकलव्य बोला "गुरुदेव आप भूल गए। यह द्वापर नहीं कलियुग है। मैं तो नहीं बदला पर आपकी दृष्टि बदल गई। मेरे लिए इस युग में बड़ा परिवर्तन यह हुआ है कि द्वापर में मैं दाहिने हाथ से तीर चलाता था, लेकिन कलियुग में बाएं हाथ से लिखता हूं। इसलिए आप मुस्कुराहट को थोड़ा कम कर लीजिए।"


यह पोस्ट पहले भी पोस्ट कर चुका हूँ पर शिक्षक दिवस पर दुबारा आपके लिए ||

Total Pageviews

Recent Post

View My Stats