जब ब्रज की कुंज गलियन में अठखेलियां करने वाला कान्हा कभी कदम्ब की सघन छांव में आंखें बंद करके बांसुरी की तान छेड़ता तो प्रकृति भी सम्मोहित हो उठती थी। कदम्ब के वृक्ष से कालिया नाग पर छलांग लगाने, गोपियों के वस्त्र चुराने की घटना हो या सुदामा के साथ चने खाने का वाकया। द्वापर के जमाने में कृष्ण का साथी रहा कदम्ब का वृक्ष आज उपेक्षा का शिकार हो चला है।
कभी मोदरा के आशापुरी माता मंदिर प्रांगण में कदम्ब के दर्जनों वृक्ष हुआ करते थे, लेकिन अब इन वृक्षों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ऐतिहासिक महत्व के इन वृक्षों के प्रति क्षेत्र के लोगों की अगाध आस्था है। बड़े-बूढ़ों के मुताबिक एक जमाना था जब यहां रमणियां श्रावणी तीज पर उन पर झूले डालकर ऊंची पींगे बढ़ाती थीं। अमावस्या, पूनम, एकादशी और चौथ समेत कई तिथियों पर यहां की महिलाएं अब भी इन वृक्षों का पूजन करके वस्त्र आदि चढ़ाती है। पिछले वर्ष पीर शांतिनाथ महाराज के चातुर्मास के दौरान यहां कदम्ब घाट का निर्माण भी करवाया गया, लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इस ऐतिहासिक स्थल के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए प्रयासों की नितान्त आवश्यकता है।
इसलिए हरा-भरा रहता है कदम्ब
एक पौराणिक कथा के मुताबिक स्वर्ग से अमृत पीकर लौट रहे विष्णु के वाहन गरुड़ की चोंच से कुछ बूंदे कदम्ब के वृक्ष पर गिर गई थी। इस कारण यह अमृत तुल्य माना जाता है। श्रावण मास में आने वाले इसके फूलों का भी विशेष महत्व है।
इसलिए भी है विशिष्ट
29 नक्षत्रों में से शतभिषा नक्षत्र का वृक्ष कदम्ब कामदेव का प्रिय माना जाता है। इसके अलावा भगवान विष्णु, देवी पार्वती और काली का भी यह प्रिय वृक्ष है। भीनमाल के कवि माघ ने अपने काव्य में इसका वर्णन किया। उनके अलावा बाणभट्ट के प्रसिद्ध काव्य "कादम्बरी" की नायिका "कादम्बरी" का नाम भी कदम्ब वृक्ष के आधार पर है। इसी तरह भारवि, माघ और भवभूति ने भी अपने काव्य में कदम्ब का विशिष्ट वर्णन किया है। वहीं प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने अपने शोध में कदम्ब वृक्ष का उल्लेख किया है।
सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी लिखा है...
ले देती मुझे बांसुरी तू दो पैसे वाली,
किसी तरह नीचे हो जाती ये कदम्ब की डाली।
ये कदम्ब का पेड़ अगर मां होता जमुना तीरे,
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥