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Monday, June 22, 2009

एक चुटकी रेत

सिर्फ़ एक चुटकी रेत
उस घर के कच्चे आंगन
याद दिलाती है एक चुटकी रेत
जब लिफाफे वाले पत्र को खोलने से
उसके मुहाने पर चिपके गोंद
हवा से उड़कर लगे
चुटकीभर से कम मिट्टी के बारीक कणों में
मन खुशबू की टोह लेता है।
उस चुटकीभर खुशबू से पूरे मन को
सुगन्धित करने का भाव खोज लेता है।
या फिर चुटकीभर रेत का वह भाव
जो राजस्थान की किसी सुदूर ढाणी में
किसी रमणी के मन में होता है।
जिससे वे हाथ अंतिम बार तब अनायास ही छुए थे
जब चुटकीभर सिंदूर से जीवन में पहली बार
उसके बालों के बीच वाली किनारी को
सिंदूर से रंगा था।
चुटकीभर उस लाल रंग की अतुलनीय खुशी
भुला देती है सीमा पर डटे पति का बिछोह।
वह वेदना तब चुटकीभर आंसू ढुळकाती है
जब वहां से आए किसी अन्तर्देशीय
खत के बीच वाले मोड़ में
चुटकीभर से भी कम रेत होती है

जो शायद पत्र को पूरा करते समय उसमें अटक जाती है
दो देशों को बांटने वाली तारबंदी के पास वाली
उस चुटकीभर रेत में उसे

अपने मिलन का संसार नजर आता है।

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