कल रात की बात है। भक्तिमती मीरां पर लिखित मीरां चरित पढ़ रहा था। मन के तारों को झंकृत करने वालासाहित्य उकेरा है सौभाग्यकुंवरीजी ने इस पुस्तक में। महावीरसिंहजी सरवड़ी और भगवानसिंहजी रोलसाहबसर से मुलाकात में उन्होंने इस पुस्तक की चर्चा की और कहा आंसू न निकल आए तो कहना। हालांकि इतना गहरा तो नहीं उतर पाया। जितना पढ़ा उस पर मनन किया और वर्तमान एक राष्ट्र सिरमौर(?) नारी के उद्गार सुने तो उंगलियां ये कॉलम लिखने से नहीं रुक पाईं।
मीरांजी के लिखे ये उद्गार मैडम पर सटीक उतरते हैं।
प्रेम दिवानी मीरां रो दरद न जाने कोय
वैसे ही राष्ट्र(?)प्रेम में आकंठ डूबी मैडम के मन की गति कौन जान सकता है। वैसे ही जैसे कोई एक अन्य मैडम की `मायां का पार पा सके।
एक पद में भक्तिमती मीरां के उदगार थे
मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।
जा के सिर मोर मुकट सोई मेरा पति होई॥
वहीं कुछ दिनों पूर्व अखबार के शीर्ष बयान थे।
मेरो तो `मनमोहनं दूसरो न कोई।
जा के सिर पगड़ी सोई मेरा प्रधानमंत्री होई॥
मीरां यह सोचकर विकल होती थी कि उसके मोहन का उसके प्रति अनुराग है नहीं। वहीं अब स्थिति उलट है। यहां `मनमोहनं` आधी रात में लोड ले लेते हैं कि मैडम के अनुराग में कहीं `जावणं तो नहीं लग रहा है।
ख्यात अर्थशास्त्री रहे `मनमोहन` को प्रधानमंत्री बनने के बाद तो दो और दो चार का कन्फर्मेशन मैडम से पूछकर करना पड़ता है। जिसके प्रति `मनमोहन` का इतना लगाव हो उसके मन में खटास कैसे आ सकती है और मैडम ने सहज मिले अविनाशी की तर्ज पर जाहिर भी कर दिया।
कई बार तो मुझे तो डर लगता है कि इस नेह से भीगे आधुनिक `मनमोहन` पांडा की तरह पगड़ी खुलकर चुनरी न बन जाए और वे कहीं भांगड़ा करते हुए इस आधुनिक मीरां के स्नेह से भीगकर `ओय होय मैं तो मखणा दरद दीवाणा। न गाने लगे।
दूसरी ओर एक बालक भड़काऊ भाषण के आरोपों की दिक्कत में फंसा हुआ है। मैडम की छुटकी बड़े पिताजी के छुटकू को गीता पढ़ने की सीख दे रही हैं। उनको खुद को पता नहीं कि गीता पढ़ने की नहीं जीवन में उतारने की वस्तु है। गीता पढ़ ली तो समझ आएगा कि जगत मिथ्या है। आपका कुनबा राम को तो मान नहीं रहा है कृष्ण को कबसे मानने लगा।
एक बात और सौभागकुंवरीजी की पुस्तक में है कि मीरां की खिलाफत में उनकी ननद, सास और विक्रमादित्य थे, जिन्होंने भçक्त से डिगाने का प्रयास किया। वैसे ही अब लालू, पासवान और मुलायम मैडम की खिलाफत में आन खड़े हुए हैं। चुनाव का तो महीनाभर रहा है। प्रधानमंत्री बनने के लिए पगड़ी होने की शर्त शायद वे समझ रहे हैं और इस महीनेभर में केश इतने लंबे हो नहीं सकते। कुल मिलाकर अबकी लोकसभा में जो थिएटर बन खड़ा हुआ है। खासा मजेदार होगा।
मीरा ने मनमोहन को पाने के लिए राज्य छोड़ा था। (वृंदावन जाने से पूर्व मीरां ने मेवाड़ का परित्याग कर दिया था।) वहीं यहां इन मैडम ने खुद राज्य का परित्याग तो कर दिया, लेकिन अपने मनमोहन को सौंप दिया। हालांकि इस बार मैडम ने राजसुख त्यागने की घोषणा तो कर दी, लेकिन देखते हैं कि वे राज अपने मनमोहन को दिला पाते हैं या नहीं। अपन तो दो लाइन घिसने और एक बटन दबाने के अलावा क्या कर सकते हैं। मारवाड़ी की दो पंक्तियां हैं।
वा मीरां नै थूं मीरकी
क्यूँ होड़ करे
वा पीअगी ज़हर रा प्याला
नै थूं पीवै तो परी मरै।