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Thursday, March 12, 2009

कहां हो राज… और कहां तुम्हारी बहादुर सेना

प्रिय राज ठाकरे,

तुम कहां हो और कहां गई तुम्हारी बहादुर सेना जो आमची मुम्बई को चैन की नींद सुलाने का वायदा करके पूरे भारत की नींद उड़ाने का माद्दा और वादा दोनों रखती है। सच में तुम्हारी बहुत याद आ रही है।
आखिर तुम्हारी ही आमची मुम्बई के ताज-ओबरॉय और नरीमन जैसे इलाकों में दहषतगदिZयों को खदेड़ने के लिए आगे तो उत्तर और दक्षिण के वीर कमांडो ही आगे आए। यह भी सनद रहे कि उसमें एक भी मराठा मानुष नहीं था। फिर प्यारे बंधु क्यों हिन्दुस्तान को बांटने की बात करते हो। हिन्दुस्तान एक है और एक होकर रहेगा। तुम्हारी बहादुर सेना और उसके सिपहसालार का स्टेटमेंट टी.वी. और अखबारों में नहीं पढ़कर चिंता हुई इसलिए खत लिख लिया।
हिन्दुस्तान को अब एक आपसी सहयोग की जरूरत नहीं है। यषवन्तजी भी लिखते हैं कि जरुरी नहीं कि झुमका बरेली के बाजार में ही गिरे जयपुर के बाबू को उसकी खनक सुनने दो और यह भी जरूरी नहीं कि तरकारी लेकर बीकानेर की मालिन ही आए सूरत वाली को भी तो अपनी शकल दिखाने का मौका दो। हिन्दुस्तान को आज साझी एकता की जरूरत है, क्योंकि कुर्सियों पर रंगे सियार चढ़े हुए हैं। बंधु तुम्हारा मराठों के प्रति का प्रेम देष के प्रति उमड़ आए और तो तुम बड़े महान कहलाओगे,
कामना के साथ
तुम्हारा एक शुभचिंतक

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