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Sunday, May 9, 2010

मदर्स डे मेरी माँ को समर्पित पोस्ट

भाषा विज्ञानियों के लिए भले ही पहला शब्द ‘ए’ अथवा ‘अ’ या फिर ‘अलीफ’ या ‘बे’ होता होगा, लेकिन व्यावहारिकता में यह फार्मूला बेमानी लगता है। दुनिया में किसी बच्चे के कंठों से फूटने वाली पहली किलकारी में ‘मां’ शब्द छिपा हुआ रहता है। कहना गलत नहीं होगा कि कोई शब्द इससे पहले भी नहीं और बड़ा भी नहीं।

 मेरी माँ को समर्पित
तुम्हे लफ्ज-लफ्ज पढऩा चाहता हूं
देखना चाहता हूं कि तुम क्या हो

तब तुम मुझे मिलती हो
गीता के श्लोकों में
कुरान की आयातों में
बाइबिल की शिक्षाओं में
गुरु ग्रंथ के शबदों में
तुलसी की चौपाइयों में
सूर के छन्दों में, मीरां के गीतों में

तब सोचना चाहता हूं कि
तू सब रिश्तों में सबसे बड़ी क्यों है
क्यों मैं सदियों से तुझे
सबसे बड़ा बताता हूं

तुझ पर कविताएं रचता हूं
कहानियां लिखता हूं,
क्यों तू मेरे लिए उससे भी झगड़ पड़ती है
जो तेरा परमेश्वर है
जितना सोचता हूं उतना उलझता हूं
उस उलझन का उपाय खोजते-खोजते
थक जाता हूं तो
तेरा आँचल ही क्यों सुकूं देता है।

पर तू मुझे परख लेती है
क्योंकि तेरी ही गोद से
ले चुका हूं मैं कई जन्म

तू इस सृष्टि में लाने का हेतु है
और तू ही सहारा।
ऐसे सवालों के जवाब ढूंढते-ढूंढते
क्यों गुजार चुका हूं कई सदियां

शायद इसलिए क्योंकि
तू दुनिया की सबसे सुन्दर कृति है
जब कहता हूं कि तेरी तेरी भावनाएं
समझ पाना मेरे बस की बात नहीं

तब जवाब मिलता है कि
तू उस शक्ति का स्वरूप है
जो इस सृष्टि का कारण है
इसलिए तो तुम
शक्तिस्वरूपा मेरी मां हो।

 
   मां तब भी रोती थी जब बेटा खाना नहीं खाता था,
   मां आज भी रोती है जब बेटा खाना नहीं देता  

दामन में दर्द है, बद्दुआ नहीं

प्रदीप बीदावत
पाली, 8 मई। जब हम कुछ कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते तो आंसू भाषा बनकर बह जाते हैं और सब कुछ कह जाते हैं। इन्हीं आंसुओं की भाषा में परिलक्षित नजर आई मां की अनिर्वचनीय उपेक्षा जो न तो उनकी ज़ुबां से फूट पाई और न हमारी कलम समेट पाई। पाली रेलवे स्टेशन के समीप वृद्धाश्रम में अपनों से बिछडक़र अलग रह रही मांओं के दामन में दर्द तो बहुतेरे हैं, लेकिन दर्द देने वालों के प्रति बद्दुआ एक भी नहीं।

इस मिसाल से बड़ी मां शब्द की परिभाषा की उम्मीद करना शायद बेमानी होगा। मुलाकात के दौरान अपना अतीत बताती इन माताओं के आंसू छलक पड़े, लेकिन इस स्थिति के लिए दोष केवल किस्मत को ही दिया। पल्लू से आंसू पौंछती सभी जननियों ने अपने बच्चों के खिलाफ अखबार में कुछ गलत नहीं छापने की अपील भी की। पाली के वृद्धाश्रम में रहने वाली ये सभी महिलाएं बड़े और अभिजात्य परिवारों से हैं। लगभग सभी के बच्चे अच्छे ओहदों पर हैं, लेकिन ये उपेक्षित सी पोते-नातियों की अठखेलियों के बजाए टी.वी. देखकर समय गुजारने पर मजबूर हैं। इन सभी को देखकर उर्दू के अजीम शायर मुनव्वर राणा की पंक्तियां बरबस ही याद हो आईं।
दामन में उसके कभी
बद्दुआ नहीं होती,
एक मां ही है जो
हमसे खफा नहीं होती।

बेटे गलत नहीं
बांगड़ कॉलेज के प्राचार्य रहे स्व. एस.एल. भार्गव की पत्नी श्रीमती विमला चार महीनों से वृद्धाश्रम में है। पति की मौत के बाद बेटी के साथ खुद के मकान में रहती थीं। बेटी की मौत के बाद बेटे ने मकान बेच दिया। श्रीमती विमला के लिए वृद्धाश्रम ही सहारा बचा। अपनी दवाओं की ओर इशारा करती हुर्ईं वे कहती हैं अब बीपी 200 के करीब रहता है। शारीरिक तकलीफ है और दिल का दर्द भी बड़ा। अपनी स्थिति के लिए कहती हैं बेटा बेचारा क्या करे बहू का स्वभाव ही थोड़ा ऐसा है।

बात नहीं करता
पति जीवित थे तब बच्चों की किलकारियों से आंगन आबाद था। उनके जाने के बाद विकट परिस्थितियों के चलते यहां आना पड़ा और आज आठ साल हो गए बच्चों की आवाज सुने। यह कहना है ब्यावर निवासी श्रीमती विनय कंवर का। वे कहती हैं चार बेटे हैं जिनमें से दो मुम्बई व दो ब्यावर में सोने का व्यापार करते हैं। आंसू पौंछते हुए उनके कुछ अस्पष्टï से शब्द वर्तमान स्थिति के लिए किस्मत को ही कोसते रहे, लेकिन बेटों के लिए तो मां का दिल दुआ ही देता रहा।

इस परिवार की मैं हूं मां
82 वर्ष की उम्र में तरोताजा एवं खुशमिजाज रहने वाली श्रीमती चंदन कंवर अतीत बताते हुए एकबारगी खामोश हो गर्ईं। उनकी आंखें दर्द बयान करती नजर आई, लेकिन वे कहती हैं गलतियां हो जाती हैं। कहती हैं कारणों पर नहीं जाऊंगी, लेकिन अब उनके साथ रहना नहीं चाहती। बच्चे फोन करते हैं। मिलने के लिए आते हैं, लेकिन अब यह वृद्धाश्रम ही परिवार है और इस परिवार की मां वे स्वयं हैं।

सब किस्मत का खेल
ईश्वर ने हमें कोई संतान नहीं दी। यदि दी होती तो आज वह यहां नहीं अपने बच्चों के साथ होती। यह कहना है वृद्धाश्रम में रह रही तमिलनाडु निवासी श्रीमती अन्नपूर्णा का। उनका कहना है कि बेटे अपनी मां को कैसे छोड़ सकते हैं। वे यहां साढ़े आठ सालों से हैं। तमिलनाडु में उनके दूसरे परिजनों के बुलाने पर वह मिलने के लिए जाती हैं। उनका कहना है सब किस्मत का खेल है। कर्मों का फल तो खुद को ही भोगना पड़ता है

नौ साल से नहीं बोला बेटा
श्रीमती कंचन को यहां आए छह माह हुए हैं। दो बेटों की मां कंचन छोटे बेटे [जो मानसिक विमंदित है] के लिए परेशान है। उनका कहना है बड़ा बेटा-बहू के आने के बाद बदल गया। अच्छा कमाता है, लेकिन घर में रखना नहीं चाहता। ठंडी नि:श्वास छोड़ते हुए कंचन कहती है सब किस्मत और समय के लेखे हैं। जो ईश्वर ने लिखा है वह सब भोगना ही पड़ेगा किसी को दोष देन से क्या फायदा।




 आप सभी को मदर्स डे की शुभकामनायें.
यह पोस्ट मेरी माँ को समर्पित हैं आप लोग  जरूर सराहेंगे और कमेन्ट करेंगे
माँ के चरणों में युग- युग से तुच्छ
प्रदीप बीदावत
राजस्थान पत्रिका में मदर्स डे पर प्रकाशित आलेख

21 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है, और साथ में जो जानकारी और अनुभव दिए हैं उनके लिए धन्यवाद्! मदर्स डे की शुभकामना!

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  2. ek ek anubhav ne dravit kar diya...bahut sundar kavita

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  3. यार दादा, सच कहूँ माँ से मिले बहुर दिन हो गए और इसे पढ़ कर तो आंसू ही आने लग गए. कमाल की ब्रीफ लिखी हे

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  4. पाली के वृद्धाश्रम में करीब करीब सभी माताओं ने अपनी किस्मत को ही दोष दिया तो वास्तव में आखिर दोषी कौन हैं खुद माताए या इनकी अपनी खुद की संताने ?

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  5. kavita dil ko chu gayi.......maa ke upar likhi sundar rachna!!
    anubhav padh dil bhar aaya!!

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  6. गजब likha hain ....shabd nhin tareef ke liye ....aap mahan ho gurudev ...aapke baare me kya kahun.

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  7. aap tuch nhi shriman ji hum tuchh hain....

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  8. sundartam kavitaon me se ek....

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  9. उसको नहीं देखा हमने कभी
    पर इसकी जरूरत क्या होगी
    ए मां तेरी सूरत से अलग
    भगवान की सूरत क्या होगी

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  10. मां...बस तुम्हारा नाम लेने भर से रूह को सुकून मिल जाता है...
    dada acha likha h
    http://vishwanathnews.blogspot.com/2009/12/blog-post_5768.html

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  11. मातृशक्ति को नमन.... आपका आलेख गहरा है

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  12. माँ के बारे में जितना लिखो उतना कम है, पर आजकल के कुछ कुपुत्रों के कारण माताओं की ममता को चोट पहुँच रही है।

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  13. भावुक व्यक्ति हैं आप...कविता भी बेहद भावुक...

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  14. प्रदीप जी बहुत ही सुन्दर कविता और बहुत ही झकझोर देने वाला आलेख ! आपकी मातृ भक्ति को ह्रदय से नमन ! काश पाली के वृद्धाश्रम में रहने वाली माँओं के बेटे इस आलेख को पढ़ पाते और अपने व्यवहार का विश्लेषण कर पाते ! एक सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार !

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  15. सचमुच मां के लिए कोई शब्द ही नहीं, जिसके माध्यम से उसके बारे में कुछ भी कहा जायें। ना उसकी उपमा दी जा सकती है और न ही उसे किसी शब्द में बांधा जा सकता है। बिल्कुल सही कहा आपने गलत कहते है वो लोग जो अक्षर की शुरुअात अ ब स से करते है। बच्चे के मुंह से निकलने वाला पहला शब्द तो मां ही होता है। बहुत सुंदर लेख।

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  16. तब तुम मुझे मिलती हो
    गीता के श्लोकों में
    कुरान की आयातों में
    बाइबिल की शिक्षाओं में
    गुरु ग्रंथ के शबदों में
    तुलसी की चौपाइयों में
    सूर के छन्दों में, मीरां के गीतों में
    सारी दुनिया ही सिमटकर रह गइ आपकी रचना में । वाह लाजवाब। पहले क्यों नहिं आई मैं आपकी यह पोस्ट तक इसका अफसोस है मुझे। आपके मातृप्रेम को शत शत प्रणाम।

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  17. maa ek bahut pavitra bahut sarthak bahut nirmal aur bahut pyaara ek ehsaas hai, jise aapne bahut sundar dhang se apni kavita mein piroya hai. yun hi likhte rahiye, hamari shubhkaamnai aapke saath hamesha hai.

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  18. ' Maa' tere kadmo mai hi samast devtao ke darshan pata hu, tere kadmo mai hi meri duniya basti hai.., pradeep sa yehi sabad de sakta hu apki rachna ko.

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