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Saturday, May 1, 2010

अंधेरे में उजले अक्षरों की तलाश


नजारा-एक
छोटू जरा चाय लाना!
आज श्रमिक दिवस है। चाय की एक थड़ी पर जमा चार लोग अखबार में छपी एक कृशकाय बच्चे की तस्वीर पर चर्चा कर रहे हैं। यह बच्चा बाल श्रमिक है, जो जवाहरात के नाजुक लेकिन खतरनाक काम को अपनी नन्ही अंगुलियों से बखूबी अंजाम दे रहा है। चारों की अलग-अलग राय है। एक बच्चे की स्थिति पर संबोधित है तो दूसरा लोकतंत्र की बदहाली को कोस रहा है। तीसरे का कहना है कि नन्हे बच्चों से इतना खतरनाक काम करने वाले लोगों को जेल में डाल देना चाहिए। यह बहस लम्बी और बोरियत भरी न हो इसके लिए चौथा व्यक्ति आवाज लगाता है, छोटू जरा चाय लाना!

नजारा-दो
क्या सोचता है छोटू

कहने को तो ‘छोटू’ हिन्दुस्तान का भविष्य के नाम से भी पुकारा जाता है, लेकिन उसे नहीं मालूम कि उसका भविष्य कैसा होगा। बस वर्तमान में जैसे-तैसे जी रहा है। चाय के गिलासों में घूमती उसकी नन्ही अंगुलियां शायद ही किसी उड़ते पंछी को कागज पर कलम से आकार दे पाती हो। बस धुन गिलास धोने और भगोने मांजने की है। समूह में घूमकर प्लास्टिक की थैलियां बीनने की होड़ वाले उसके जैसे ही कुछ और बच्चे, जिनके मुंह में सस्ता गुटखा या पान मसाला भरा हुआ है और भी अधिक बेखबर हैं। जि़ंदगी में कभी कोई नूरानी लम्हा आएगा तो किस रूप में। यह कभी सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली। वह बस तो साहब के ऑर्डर की ओर चल देता है।

नजारा-तीन
साहब क्या कहते हैं
ऐसा क्यों होता है। इस विषय पर चिन्तन करने से पहले तीसरे नजारे पर नजर डालते हैं। एक साहब बाल श्रम अधिकारी हैं। पोस्टिंग औद्योगिक इकाइयों के लिहाज से एक बड़े शहर में है। सर्वे करते-करते हालत खराब होने लगती है। उनकी मैडम सरकारी मुलाजिम हैं। लिहाजा घर का काम करने के लिए कोई चाहिए। साहब आज एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में बाल श्रमिकों के बारे में जानकारी लेने आए हैं। मालिक से मुखातिब होते हुए कहते हैं ‘सरजी! कोई ढंग का छोरा बताइए ना जो घर का काम बेहतर तरीके से कर सके।’

तीनों स्थितियों पर गौर किया जाए तो ये हमारे आस-पास ही नजर आ जाएंगी। नरेगा कार्र्यों में बाल श्रमिक लगाए जाने की खबरें भी समाचार पत्रों के माध्यम से आई, लेकिन श्रम विभाग ने कभी भी निरीक्षण की जहमत नहीं उठाई। देश में बाल श्रमिकों की स्थिति कैसी है इसकी एक नज़ीर ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ ने प्रस्तुत की और फिल्म ऑस्कर अवार्ड से नवाजी गई। उन्होंने झुग्गी-झोंपडिय़ोंवाला हिन्दुस्तान दिखाया और विदेशियों को पसंद आया। फिल्म अवार्ड ले गई, लेकिन सरकार ने ऐसे बच्चों को चिह्निïत करने की दिशा में विशेष कदम नहीं उठाया।

क्यों नहीं होते मामले दर्ज
देश में श्रम विभाग की ओर से दर्ज बाल श्रम के मामलों में चाय की थडिय़ों और होटलों पर दर्ज बाल श्रम के अधिकांश मामलों में कार्रवाई नहीं हो पाती। इनके मालिक बाल श्रम अधिनियम की धारा 3 के प्रावधान को हथियार बनाते हैं। इसके तहत बच्चों को अभिभावकों की देखरेख में काम करने की अनुमति है। बाल श्रमिकों को नियोजित करने वाले लोग अपने मजदूरों को अपना ही पुत्र बताकर केस रफा-दफा करवा लेते हैं।

भौंचक रह गया देश
पुलिस, श्रम विभाग और संगठन प्रथम की मदद से प्रशासन ने बाल श्रम बचाव के लिए 21 नवम्बर 2005 को दिल्ली के 100 अवैध बेलबूटा कारखानों के 488 बच्चों को बचाया था। ताज्जुब करने लायक बात तो यह थी कि इन बच्चों की उम्र पांच-छह वर्ष से अधिक नहीं थी। ये कारखाने सीलमपुर की गंदी बस्ती में चल रहे थे। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की नाक के नीचे हो रहे बाल श्रम ने सरकार की आंखें खोलकर रख दी। भारत में ज्यादातर नन्हे बच्चे महीन काम करने में लगाए जाते हैं। इसका कारण उनकी अंगुलियां छोटी होना होता है। जरी, हाथ कढ़ाई, मखमल से सम्बन्धित काम, चमड़े के बेग बनाने, लाख की जड़ाई और जवाहरात आदि कामों में नन्हे बच्चों का उपयोग होता है। यूनिसेफ के अनुसार दुनिया में दो वर्ष से 17 वर्ष तक की उम्र के 250 मिलियन बच्चे श्रमिक के तौर पर काम कर रहे हैं।

सच भी लगे हैरानी जैसा
पाली की औद्योगिक इकाइयों में भी बाल श्रमिकों की संख्या जीरो। बात कुछ हजम नहीं होती, लेकिन सरकारी कारकूनों के अनुसार यह बात सौ फीसदी सच है। ऐसे में तीसरी तस्वीर जो साहब क्या सोचते हैं हमारे जेहन में आती है। पाली में साड़ी फोल्डिंग के काम, प्रिंटिंग मशीन आदि पर काम करने वाले श्रमिकों का हिसाब शायद श्रम विभाग ने कभी नहीं लिया। चूंकि श्रम विभाग की ओर से सर्वे किए हुए एक लम्बा अरसा बीत चुका है, ऐसे में चाय की थडिय़ों, होटलों और निजी संस्थानों में बाल श्रमिक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

राजस्थान पत्रिका के पाली संस्करण में 1 मई २०१० को प्रकाशित

13 comments:

  1. पाली की औद्योगिक इकाइयों में भी बाल श्रमिकों की संख्या जीरो। बात कुछ हजम नहीं होती...
    baat wakayee hazam nahin hoti...vicharneey post.

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  2. जब तक सब छोटू से चाय मंगवा कर पीते रहेंगे और दुकानदार उससे झूठे गिलास कप धुलवाते रहेंगे। हालात नहीं बदलेंगे।

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  3. सटीक लेखन...गौर करने लायक पोस्ट..

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  4. sochne par majboor kar diya !

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  5. Chetna jagane ke liye DAINIK BHASKAR ka ek aur achha prayas.

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  6. bal mazdoori har gazag hai hindustan me , magar pehel koun kare , sab se pehle aam aadami ko sazag hoga tabhi ye haalat sahi hoge.karva tabhi banega jab aadmi chalega,

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  7. chotu jaise baccho ke halaat tabhi sudhar paaygi jab humari soch balegi..
    accha post!

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  8. chotu jaise baccho ke halaat tabhi sudhar paaygi jab humari soch balegi..
    accha post!

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  9. aaj ke baadh kabhi hotel me chai nahi piunga. nice job

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  10. aaj ke baadh kabhi hotel me chai nahi piunga. nice job

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